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ritesh deo

Tragedy

4  

ritesh deo

Tragedy

कल्पना के परे

कल्पना के परे

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कुछ स्त्रियाँ तो

कल्पनाओं में जी लेती हैं

किसी के साथ पर्वतों में विचरते हुए

बर्फीली सर्द हवाओं में हाथों हाथ डाले हुए

किसी झील में अपना अक्स निहारते हुए

या फिर पहाड़ों की ठण्डी रात के मध्य 

जलते अलाव की गर्माहट लेते हुए 

वो सब कल्पनाओं में पा लेतीं हैं 

कुछ स्त्रियां 

कल्पनाओं में जी लेती हैं।

लेकिन कुछ स्त्रियों के हक 

कल्पनाएं भी नहीं होतीं हैं 

बस स्वयं को ढोती हुई 

बेमकसद जीती है 

चूल्हे के धुएँ से निकलते आँसू 

पता नहीं धुएँ के कारण है 

या फिर कोई बेबसी है 

रोज सुबह से काम पर जाती 

या फिर रात शराबी पति से पिटती

कहाँ आंखो में ख्वाब सजा पाती 

हो सकता हो कभी कोई 

ख्वाब सज भी जाए पलकों में 

या फिर कोई राह मिल भी जाए 

पर डर जाती है और 

आधी नींद में जग जाती है 

कुछ स्त्रियों के हिस्से में 

कल्पनायें भी नहीं होती।


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