कविता हमें रच रही है या फिर हम उसको। कविता हमें रच रही है या फिर हम उसको।
रीतियाँ नश्वर जगत की यों निभाना चाहिए , चार दिन की ज़िंदगी का ढंग आना चाहिए । रीतियाँ नश्वर जगत की यों निभाना चाहिए , चार दिन की ज़िंदगी का ढंग आना चाहिए ।
नम होती आँखें छिपाए मुस्कुराहट के वो आँसू कहलायें। नम होती आँखें छिपाए मुस्कुराहट के वो आँसू कहलायें।