गीतिका
गीतिका
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रीतियाँ नश्वर जगत की यों निभाना चाहिए ,
चार दिन की ज़िंदगी का ढंग आना चाहिए ।
राख से पहले यहाँ क्यों हो रहा जीवन धुआँ,
ध्यान चरणों में सदा प्रभु के लगाना चाहिये।
देह माटी की बनी अभिमान इस पर क्यों करें ,
मोह माया से परे ,जीवन बिताना चाहिए ।
ईश है कारक सदा से ,भाव कारक क्यों रखे
कर्म से झोली भरें अब पुण्य पाना चाहिए ।
पाप करते जा रहे क्यों ,धर्म के धारक बनें ,
कीर्ति से शोभित पताका ही दिखाना चाहिए ।
