Anita Sharma
Others
कविता हमें रच रही है
या फिर हम उसको।
कशमकश इसी बात की
उठ रही है ज़हन में,
दिल के अलफ़ाज़ उकेरो
तो जोड़ देती है हज़ारों से,
मिलते बिछड़ते रिश्ते
नज़र आते कतारों से,
कल्पनाओं से परे कुछ,
सच पर चले जो लेखनी,
बन कर नयी खबर,
छप जाती है अखबारों पे।
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उलझन
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नज़्म-ए-जिंदग...
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