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Satya Narayan Kumar

Abstract

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Satya Narayan Kumar

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क़लम

क़लम

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मेरी क़लम की कहानी,

सुना रहा आज़ मेरी जुबानी।

कोरा कागज़ है,

सदा जिसकी दिवानी।


मेरा हर वो गुज़रा पल,

मेरा कल लिखा।

आज़ के दौर में सिमट रही,

मेरा इतिहास लिखा।


ए क़लम आ तुम्हें,

उंगलियों पे नचा दूं।

मेरे लफ़्ज़ अपने आज़,

तुम्हें गाकर सुना दूं।


हाथ मेरे जब तुम आए।

बन शायरी, कविता मेरी कहानी आए।

बातें तुमसे रोज़ होगी।

हर वक्त नई खोज होगी।


ऐ क़लम आ..

दिल ने जब जो भी,

बातें की तुमसे।

लिखना मेरी मोहब्बत,

अपनी जुबान से।


बन के मेरा प्यार,

दवात से उतर जाना।

लिखना मेरी मोहब्बत,

जज़्बात मेरी बन जाना।


इश्क़ है तुमसे,

ले डूबे कहीं हमें न आज़ ये।

आए कितने ख़ुशी व आए कितने ग़म,

लिखना हर बात ये।।

एहसास को मेरे कविता लिखना

दर्द सीने की किसी से न कहना।।


ऐ क़लम आ..

रूबरू नहीं है मेरी पहचान तुमसे

बेपनाह मोहब्बत है मेरी जान तुमसे।

मेरा रिश्ता तुमसे अजीब है

मेरा दर्द तुमसे करीब है।


ऐ क़लम आ

सत्या ठहरा पागल,

शायर तेरा दिवाना।

क़लम कह रही,

हमें इसके हाथ न आना।।


हर काम इनका तराना,

अपने लफ़्ज़ों को गाना।

हमसे करके मोहब्बत,

लिखकर दर्द हमें रूलाना।


ऐ क़लम आ तुम्हें,

उंगलियों में नचा दूं।

मेरे लफ़्ज़ अपने आज़,

तुम्हें गाकर सुना दूं।


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