Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Baman Chandra Dixit

Abstract

5.0  

Baman Chandra Dixit

Abstract

कलाम कलम का

कलाम कलम का

1 min
538


कलाम कलम का हो तुम 

तम्हे किस से मैं लिखूं

स्याही शाहिद हो जाते

यूँ ही लिखते लिखते।


हवा की रवानगी हो तुम 

कैसे मैं तुम्हें देखूं

आंखें नम हो जाते अक्सर

महशुश करते करते।


कलमा प्यार का लिक्खा

बलमा के नाम जो

खाम बे-नाम ,खत परेशां

ठिकाना ढूंढते ढूंढते।


सुबक सुबक के सुबह

अस्क की आंसूं जो रोती,

खुसी की फुहार है ये

फलक तक छलक जाते।


परख तो लो एक बार

धार कितना औजार मैं तेरी,

मौका परस्त दोस्त यहां

दुश्मनी आजमा भी लेते।


मरहम लगाने चले थे तुम

जिन ज़ख्मों को मेरी,

खुद ही भर चुके बेचारे,

लहू खुद की पीते पीते।।


मत कहो बेपरवाह उन्हें

जिन्हें तुम कोशते अब तक,

नींदें परेशां उनकी आज भी

करवटें बदलते बदलते।।


बेतरतीव भटकते लफ़्ज़ों को

शक्ल नवाज़ने के बाद

कायल कलमकार कलम की

कलाम पढ़ते पढ़ते।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract