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Kawaljeet Gill

Abstract

3  

Kawaljeet Gill

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कल तुम भी ये दिन देखोगे

कल तुम भी ये दिन देखोगे

2 mins
345


जीवन मिला है तो हर पड़ाव जीवन का आएगा भी

बचपन लगता सबको प्यारा प्यारा यादें

उसकी रह जाती है जीवन में

फिर आती है जवानी वो मौज मस्ती में गुजर जाती है।


आने लगता है जब बुढापा तो सेहत भी बिगड़ने लगती है

जो होते है करीबी साथी बस वो ही साथ निभाते हैं

वरना अपने ही खून को हम सनकी बूढ़े लगने लगते हैं।


माना की उम्र के साथ सुनाई थोड़ा कम पड़ता है

नजर भी थोड़ी सी कमजोर होने लगती है

फिर भी है तो हम उनके जनम दाता ये

बात क्यों वो बच्चे भूल जाते हैं।


कल तक जिनको अपना फर्ज समझकर पाला हमने

वो ही बच्चे हमको आंख दिखाते है

हमारे प्रति उनके भी कुछ फ़र्ज़ है जाने क्यों वो भूल जाते हैं।


कल तक उनकी शरारतों पर हम हंसते थे

हमारी छोटी सी भूल वो बर्दास्त नहीं कर पाते हैं

सेहत हमारी साथ नहीं दे रही ये बात क्यों वो भूल जाते हैं।


हर पल हमको रहता है ख्याल उनका

इसलिए उनकी फिक्र रहती है

एक पल भी जो ओझल हो जाते हैं

हमसे साँसें हमारी रुक जाती है

माँ के एहसासों को क्या समझेंगे ये बच्चे

माँ का बुढ़ापा भारी लगने लगता है इनको।


सोचते है ये बच्चे आजकल के

बस अलग घर बसा ले अपना

इसलिए माँ बाप को सनकी कहते हैं

उनको बुढ़ापे में वृद्ध आश्रम का रास्ता दिखाते हैं।


क्यों वो भूल जाते हैं कि वक्त उनको भी

ये दिन एक रोज दिखायेगा

जैसे कर्म करेंगे वो

वैसे फल उनको भी मिलेंगे।


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