कल की चिंता
कल की चिंता
उम्र पढ़ने की,
खा पीकर बढ़ने की,
फिर भी बोझा उठाये है.....
समझ लीजिये कल की चिंता हैं।।
बीच में पढ़ाई छोड़ दी,
जवानी दाँव पर लगा दी,
फिर भी मुस्कुराते रहते हैं...
क्योंकि अपनों के कल की चिंता हैं।।
हाथ पैर से विकलांग भी,
एकमात्र ही कमाने वाले प्राणी,
फिर भी दौड़ते ही रहते हैं...
उन्हें परिवार के कल की चिंता हैं।।
दौड़ते-दौड़ते उम्र ढल गयी,
बोझा उठाते पीठ भी झुक गयी,
फिर भी मेहनत करते रहते हैं...
क्योंकि आनेवाले कल की चिंता हैं।