कितना समय बित गया..
कितना समय बित गया..
कितना समय बीत गया
जो तुम मिलने नहीं आये
हम निकले तेरी गली की ओर
पर हमारे पैर लड़खड़ाए..
तुम आओ कभी मिलने
उस नुक्कड़ पे चाय की दुकान पे
जहाँ हम देखते राह तुम्हारी
और देखते रहते तुम्हारे मकान को..
थोड़ा सा सब्र तुम भी रख लेते
हमारी उलझने हम जल्द सुलझा लते
अगर करते तुम जरा सा इंतजार
आ के हम तेरा हाथ थाम लेते..
प्यार तो नहीं बढ़ा हम में
दूरियाँ ज्यादा बढ़ गई
जो करनी थी बात तुझसे
वो बात अधूरी रह गई..