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Anjali Vyas

Abstract

5.0  

Anjali Vyas

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किताबें मौन सी

किताबें मौन सी

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होती है मौन -सी किताबें

पर कितना कुछ कह देती हैं।

बिना कुछ मांगे कभी

मुश्किल आसान कर देती हैं

तो कुछ जिज्ञासा को शांत

करने का जरिया होती हैं।


कुछ किताबें, ख़ामोश सी

इंतज़ार करती हैं अपने पाठकों तक पहुँचने का

कुछ करती हैं, इंतज़ार उन्हें खोले जाने का

कुछ कुम्भकरण सी नींद सोती रहती हैं।


तो कुछ उदास सी दराज़ के

किसी कोने में जीवन जीती रहती है।

धीरे-धीरे धूल फाँंकती हुई,

बारिश की नमी के थपेड़ों को

छुपाती हुई दर्द अपना बयां करती हैं।


कुछ होती हैं जोंक सी जो बस

चिपक जाती है पाठक से अपने

जब तक अनवरत रूप से पढ़ न ली जाये

पीछा नहीं छोड़ती।


कुछ होती हैं सनातन शाश्वत सत्य सी

जो बस कालजयी होकर

इतिहास के पन्ने रंग जाती हैं।


अनिश्चितताओं से भरे सफ़र में एक ढ़ाल सी

जीवन को एक नया रूप उद्देश्य दे जाती हैं।

कुछ होती हैं मुस्कु

राती हुई

पाठकों को गुदगुदाती हुई।


हंसी के फ़व्वारें समेटे हुई

कितना कुछ कह जाती हैं।

कुछ किताबें हमारी संस्कृति की

धरोहर तो कुछ महान आत्माओं की

विजय पताकाओं को दर्शाती

अपनी यादों में उन्हें जिन्दा रखती हैं।


प्रेरणा की प्रतीक

आत्मविश्वास से परिपूर्ण कर जाती हैं।

कुछ कक्षा में बच्चों को सुलाती हुई

तो कुछ माँ की लोरियों में लीन होती सी

कुछ छुईमुई सी मुरझाई हुई फटी हुई

अपनी जिल्द को जैसे मरीज़ कोई

पट्टियों में बंधा हो डबडबाई

आँखों से निहारती हैं।


होती हैं मौन -सी किताबें पर

कितना कुछ कह देती हैं।

कुछ पहली बारिश की

फुहारों सी तर कर जाती हैं

माटी की सौंधी सुगंध का

एहसास कराती हैं।


सूखे हुए गुलाब,

उनकी आह अपने में शामिल किये

तो कहीं किसी के आसुँओं के

निशान समेटे रहती हैं।

किताबें मौन सी कितना कुछ कह जाती है।


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