किताब.....
किताब.....
कुछ देर जिंदगी की किताब को पलट के जो देखा,
बहुत धूल जमा पड़ी हैं ..किसी की बेवफाई की....
हर पन्ना मेरा अतीत दर्शाता रहा,
किसी टूटे आईने की तरह
खूब चुभता रहा,
दर्द को होंठों से काटा लहू बेशुमार निकला,
और आँखों से आंसुओं ने रूखसते पैगाम चुन लिया,
कुछ देर जिंदगी के किताब को पलट के जो देखा....
अपनों का तो किस्सा कुछ मजेदार लिखा,
दुश्मन क्या जीतता ....कुछ खेल ही ऐसा उन्होंने खेला था....
मैं हार जाऊँ...या जीत जाऊँ...
इस कशमकश में जिंदगी उम्र की दहलीज से
कहीं और जा निकली ..
कुछ देर जिंदगी के किताब को पलट के जो देखा......
प्यार -मुहब्बत के किस्से इतिहासों में लिखे थे,
इस बार मेरी किताब का हर पन्ना कोरा पड़ा हुआ था,
जरा हवा के झोंके से पन्ना जो पलटा,
राशन की कतार की तरह बेवफाई झिलमिला उठना था.....
कुछ देर जिंदगी की किताब को पलट के जो देखा......
आखरी पन्ने की बारी आयी,
जिंदगी ही शायद खत्म होने आयी,
सप्लीमेंट की तरह कुछ पन्ने माँग भी लूँ अगर खुदा से,
क्या लिखूँगा ये सोच में दर्द को तमाशगीर बना लिया था...
कुछ देर जिंदगी के किताब को पलट के जो देखा......
