किसे पता
किसे पता
रुक गयी हूं अब तेरे दर के सामने सनम ,
तुम हमसे इश्क करों या दगा किसे पता।
तेरे ही जज्बातों को याद करते हैं हम,
दूर करो या गले लगाओ अब किसे पता।
हम तो अनजान रास्ते पर निकल पड़े,
तुम दोस्त बनो या अब दुश्मन किसे पता।
यह भरोसा देते हम सदा तुम्हारे रहेंगे,
तुम याद करो या भूल जाओ किसे पता।
इन वादियां पर हम चलते ही रहेंगे,
रास्ते में फूल रखो या कांटे किसे पता।
मैं तेरा ही दीदार चाहती रही हमेशा से,
तुम हमसे प्रेम करो या नफरत किसे पता।
अब इन एहसासों में गहरी खामोशी है,
करीब आओ हमारे या दूर जाओ किसे पता ।