Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Preeti Kumari

Tragedy

3  

Preeti Kumari

Tragedy

किसान दुर्दशा कविता

किसान दुर्दशा कविता

1 min
255


बेबस और लाचार किया

अन्नदाता कहलाने वालों का

जाने कब से तिरस्कार किया

हरी-भरी धरा हमसे है

बगिया उपवन हम महकाते हैं

करते दिन-रात परिश्रम 

अन्न दाना सब तक पहुंचाते हैं

हाल बेहतर ना हो सके

ठिठुर ठिठुर कर हम सब रहते

जाड़े की रात बिताते हैं


कर्ज में डूबा रहता किसान

सुख चैन सभी खो जाता है

परिश्रम का सही भुगतान

सरकार यहां की ना कर पाती है

खुद तो रहते महलों में

मेहनत सड़कों पर सस्ती बिक जाती है

ऐसी दुर्दशा हमारे किसान की

जाने कैसे इनको रास आती है


खेती कर जीवन बिताएं

खून पसीना दिन रात एक कर जाएं

अपना हक पाने की खातिर

सरकार का दरवाजा खटखटाये

मेहनत का फल मिलता ना इनको

मारकर हक इनका महंत खा जाएं

ऐसा हमारा किसान बेचारा

बदहाली में जीवन बिताता है

बदहाली में जीवन बिताता


         



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy