BILKIS KHAN

Tragedy

4.4  

BILKIS KHAN

Tragedy

किन्नर भी इंसान हैं

किन्नर भी इंसान हैं

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नर नारी को प्राप्त सम्मान जगत में,

तीसरे लिंग का कोई मान नहीं,

जिन्हे तुम किन्नर,मामू,छक्का कहते हो,

मुझे बताओ ये लोग क्या इंसान नहीं।

समाज आज भी इस बात की स्वीकार नहीं कर पा रहा,

कि हमारे देश में अब संवैधानिक रूप से अब तीन लिंग है;

जिस कारणवश आज भी क्या हाल है इनका दर्शाना चाहुंगी अपनी कविता के माध्यम से...

उम्मीद थी एक लड़के के जन्म की,

सब खुशियां खूब मना रहे थे,

नारियों ने मंगल गान गाया,

लड्डू बाटे जा रहे थे।

सुनकर पहली किलकारी पिता ने पूछा,

बेटी है या बेटा? था वो उत्सुक बहुत ज्यादा,

मां रोते हुए बोली ना नर ना मादा, है दोनों का आधा आधा।

ये तो किन्नर है!! आवाज़ पिता की गूंजी,आश्चर्य से वो चिल्लाया,

मासूम था वो शिशु फिर किन्नर क्यू कहलाया?

बचपन से तन पर रख कर दुपट्टा, चलता मर्दों जैसी चाल था,

नर नारी के मेल का वो व्यक्तित्व एक कमाल था।

पर परिवार को उसके हाव भाव पर होने लगा ऐतराज,

फिर सदैव ताना मिला, कैसा होने लगा तेरा अंदाज।

मन ही मन अपनी पहचान पर घुटने को हुआ मजबूर,

पर किसी को उसे समझना हुआ ना मंजूर।

कुछ वर्षों बाद जब पूर्णता किन्नरों का गुण उभर आता,

तो वो स्वयं अपने माता पिता द्वारा बेघर के दिया जाता।

अपनों ने ही निकाल दिया जब, सम्मान गैर क्यू देते?

जैसा भी है संतान है तू गले लगाकर कहते।

तड़पते मित्र, बच्चे, घरबार के लिए,,क्यू नही मिलता जीवन साथी? 

बस्ता, कॉपी, नौकरी तो महज़ सपना है, बस ये ताली साथ निभाती।

फिर अपनी भूख मिटाने की कभी, वाहनों के हाथ फैलाते है,

तो कभी महज़ कुछ पैसों के लिए गलियों में नाचते गाते है।

उस समय भी समाज उपहास कर कहता, "देखो देखो हिजड़ा",

अरे बेबसी समझो उनकी शौख से वो नहीं करते मुजरा।

दुखद है जितना जीवन इनका,

अधिक दर्दनाक मर जाना,

घसीट पीट कर जूते चप्पलों से, कहते वापस लौट कर मत आना।

छीन लिया इंसान का दर्जा, हर कदम पर यू धूतकारा,

फिर क्यूं विवाह व जन्म अवसरों पर,

 इन्हें दुआओ के लिए पुकारा।

"जिन्हे आप सब किन्नर कहते हो" सुना है कभी?

ये अपने ही भाई को मरवाते है, या मां बाप को सताते है?

देश की बेटी की हत्या करते, या इज्ज़त लूट कर आते है?

"कड़वी है बात जो कहती हूं में आज"

"क्षमा चाहूंगी ' 

"कड़वी है बात जो कहती हूं में आज"

वास्तव में मर्द है फिर यही किन्नर समाज।

अंत मे यही कहना चाहूंगी,

नागरिक ये भी है देश के, पूर्ण समानता के अधिकारी है,

बंद करो यू अपमान करना, इन्हे नहीं कोई बीमारी है।

मानवता श्रेष्ठ धर्म हैं, दर्जा दो इनको इंसान का,

अपनाकर हिस्सा बनाओ समाज के सम्मान का। 



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