ख़्वाहिश
ख़्वाहिश
ख़्वाहिश है उस चाँद को छूने की
तम्मना है उस चाँद को पाने की
चाहत है बगिया में महकने की
मासूम सी चाह है तितली बनने की
ख़्वाहिशों से भरा जहाँ मेरा
चाहत है चार दिन की जिंदगी में
चार हसीन पल समेटने की
बाहें फैला के बैठी है जिंदगी
रूठी हुई किस्मत भी फिर
से मान जाएंगी
चाहते बाँटती हूँ सारे जहाँ को
मुरझाया हुआ पौधा पानी से
फिर खिल जाएगा
जिंदगी से रूठे मेरे यारों
जिंदगी भी मान जाएगी
बाहें फैला के जी लो इस
पल को जिंदगी दो दिन का
त्यौहार बन जाएगी