ख्वाब
ख्वाब
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इन दिनों ख्वाब देखना अजीब सा लगता है
जो है वह किसी ख्वाब से कम जो ना है
ये कैसी दुनिया मे हैं हम; सवाल आता है मुझे
उसी दुनिया में, जिसमें पुरी दुनिया खोई हुई है।
अगर कल मे वापस जाना पडे
कल को जरूर चुनुगीं मैं
आज का कोई फैसला नहीं
कल की चुनौती कैसे लड़ूँगीं मैं।
अवसोस नहीं है ग़म का
अवसर का इंतजार है
घड़ी की सुई के भरोसे
खेल के मैदान में अब उतरुंगी मैं।
समय के साथ, मैं भला कैसा खिलाड़ी ?
वह धिमी सी आवाज़ मे शौर मचा जाएगा
पहले शुरू करके भी आखिर में उतरेंगे
उसकी भरपाई हम कहां भर पाएंगे।