खून
खून
खून,खून है,
सबका खून एक है।
सबका खून लाल है।
फिर भी ,
खून-खून में भेद है ,
खून में,प्रकार है,प्रवर्त्ति है,प्रकति है।
खून
ऐ है,बी है,ऐ बी है,और
ओ भी है।
ये
आपस में नहीं मिलते
अपने वर्ग विशेष में ही,
मिलते है,
मिलाया भी तो
मर जाओगे ,मारे जाओगे .
खून खून है,
सबका खून लाल है,
मगर,
सबकी प्रवत्ति अलग है।
कोई गरम ,कोई नरम,कोई शांत,
गरम खून,
हर समय उबलता है,
वज़ह या बेवज़ह.धर्मानत्ता,शेष्ठता और
अमीरी से ग्रस्त,लिप्त
अन्य खून को शिकार
बनाने को उद्धरत .
नरम खून ,
कभी कभी गरम हो जाता है ,
उत्तेजित,प्रताड़ित,अपमानित
या
अस्तित्व के के बचाने हेतु,
फिर ये भी होता है,
शिकार को तत्पर।
शांत खून –
हरदम ठंडा ही रहता है,
हर तरफ की
विपदा,अपमान,और संक्रमण काल पर भी,
सहना,सहना,और मिट जाना,
यही इसकी नियति है।
ये गरीब का खून है।
काश !
ऐसा हो जाये
खूनो की प्रकृति,प्रवत्ति और प्रकार
एक हो ,
तो
स्वर्ग की परिकल्पना
साकार हो जाये ?