खुशियों के आधार
खुशियों के आधार
जगत की खुशियों के आधार ।
रहे हैं सद्गुण औ'र सत्कार ।।
हुआ जब-जब भी नवल प्रभात ;
मिला सपनो को पारावार ।
सरल मन तन सुचिता से युक्त ;
यहीं तो है सच्चा श्रृंगार ।।
सभी दुर्व्यसनों से हो मुक्त ;
निकल चल भव सागर के पार ।।
उदित हो ज्यों-ज्यों सूरज एक ;
घटे त्यों-त्यों तम का आकार ।
तरलता से मिलता हर मार्ग ;
सुगमता से बहती है धार ।