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purushottam kumar sinha

Drama Inspirational

5.0  

purushottam kumar sinha

Drama Inspirational

खुद लिखती है लेखनी

खुद लिखती है लेखनी

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मैं क्या लिखूँ !

खुद लिख पड़ती है लेखनी...


गीत-विहग उतरे जब द्वारे,

भीने गीतों के रस,

कंठ में डारे,


तब बजते हैं,

शब्दों के स्तम्भ,

सुर में ढलते हैं,

शब्द-शब्द !


मैं क्या लिखूँ !

फिर खुद लिखती है लेखनी...


भीगी है जब-जब ये आँखें,

अश्रुपात कोरों से बरबस झाँके,

तब डोलते हैं,


शब्दों के स्तम्भ,

स्खलित होते हैं,

शब्द-शब्द !


मैं क्या लिखूँ !

फिर खुद लिखती है लेखनी...


समुंदर की अधूरी कथाएँ,

लहरें, तट तक कहने को आए,

तब टूटते हैं,


शब्दों के स्तम्भ,

बिखर जाते हैं,

शब्द-शब्द !


मैं क्या लिखूँ !

फिर खुद लिखती है लेखनी...


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