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Shishpal Chiniya

Abstract

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Shishpal Chiniya

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खतरा ऐ जान

खतरा ऐ जान

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वो तो आँचल में छुपी है बैठी 

बस लाचार माँ की है वो बेटी 

इज्जत को अपने हाथों में लिये

बंद मुठ्ठी वो कोने में सिमटी।


गिर गयी इस हद तक दरींदगी

खतरे में अजन्मी की भी जिदंगी 

रखकर खामोश वो इस जिदंगी में

तपती ज्वाला सीने में लिए है बैठी।


देते दोष क्यों उसके वस्त्रों को 

छोड़ दिया जालिम सहस्त्रों कों

प्रतिशोध की अग्नि में जलती वो

प्रखर शस्त्र लिए अब वो है बैठी।


किसी की है बहन तो बेटी किसी की।

खतरे में है भाग्य की हैटी किसी की।

दोष किस्मत को तो क्या दे अब कोई

वो तो कसूर खुद का ही लिये है बैठी।


क्यों हर नारी पर आज गाज है

खतरे में क्यों उनका सरताज है।

देरी सिर्फ वो चिगांरी उठने की है

रण का भी आगाज लिये बैठी है।


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