कहर
कहर
कौन गलत है कौन सही कभी सोचा किसी ने,
सह लेते हैं सब जान कर कभी टोका किसी ने।
फल फूल रहा है जुर्म का कहर दिन व दिन,
देख रहे हैं सब, हिम्मत रख कर रोका किसी ने।
चुप्पी लगा कर देख रहे हैं एक दुसरे को,
जान कर भी, सच बोला किसी ने।
देख कर कितना गहरा जख्म है गरीब का,
कभी मरहम लगा कर सोखा किसी ने।
दिक्कतों और परेशानीयों का दौर है हर जगह,
क्या हल है इसका कभी सोचा किसी ने।
कान को लगाये टूटियाँ बैठे हैं सब,
क्या कह रहा है घर का बुजुर्ग सोचा किसी ने।
सुन कर वहरे, देख कर अन्धे बनते हैं सब,
क्या फर्ज है इंसानियत का सोचा किसी ने।
छत पर लगे कैमरे से देखते हैं, अपने घर का चोर है कौन,
कैद कौन, कौन है खुदा के कैमरे में सुदर्शन सोचा किसी ने।