खोना नहीं.....
खोना नहीं.....
वो वक़्त भी क्या वक़्त है?
जिसकी कोई कदर नहीं
वो अपनापन भी क्या?
जब दिल से गले मिले नहीं
वो जिन्दगी भी क्या है?
अगर जी भर के जीए नहीं
वो नजराना भी क्या है?
जिसे प्यार की कदर नहीं
वो नगमे भी क्या है?
जिसको दिल ने समझा नहीं
वो प्यार भी कैसी है?
जिसमें कोई वफ़ा ही तो नहीं
वो गम भी क्या गम है?
जो कभी तो रुलाया भी नहीं
वो खुशी भी कैसी है?
जिसे दूसरों का भलाई नहीं
वो महफ़िल भी क्या है?
जिसमें कोई दोस्त ही नहीं
वो शौकत किस काम की है?
औरों को दिखता नहीं
वो वचन भी क्या है?
जिसे कभी कोई निभाया नहीं
वो दुनिया भी कैसी है?
कोई इसे तो समझा नहीं
वो अपने भी कैसे है?
जो अपनापन जताया नहीं
वो दोस्ती भी कैसी है?
जिसे दिल कभी मानता नहीं
ये दर्द एक अहसास है,
अपनों को खोना नहीं.......
ये वक़्त तो बड़ा चंचल है,
उसे कभी खोना नहीं
ये अपनापन जो मिला है,
फिर कभी खोना नहीं
ये जिन्दगी तो एक जंग है,
हार कर खोना नहीं
ये नजराना तुम्हें मिला है,
ठुकरा के खोना नहीं
ये नगमे दिल की सोच है,
भूलकर खोना नहीं
ये प्यार में अगर धोका है,
धीरज को खोना नहीं
ये गम की आँसू को पीनी है,
तो दर्द को खोना नहीं
ये खुशियाँ अगर मिली है,
दूसरों को खोना नहीं
ये महफिल को सजाना है,
पर दोस्ती खोना नहीं
ये शौकत को बढ़ाना भी है,
तो गैरों को खोना नहीं
ये वचन को निभाना तो है,
धर्म कभी खोना नहीं
ये दुनिया बड़ा अजीब है,
सपनों को खोना नहीं
ये दोस्ती भी तो वरदान है,
इसे तुम खोना नहीं
ये दर्द एक अहसास है,
अपनों को खोना नहीं..........
