खोए भाव
खोए भाव
यद्यपि हूँ मैं तुम्हारे सम्मुख
बता रहा हूँ तुम्हें अपनी उपलब्धि
पर नहीं आदी तुम्हारे कान
सुनने को नयी बात
है मन तुम्हारा जकड़ा
उन्हीं पुरानी कथाओं में।
यद्यपि मूक हो तुम,
कह रहे नहीं एक भी शब्द
सुनने को बात तुम्हारी
कान मेरे हैं तत्पर सदा।
खो रहे जो भाव
दोनों ओर से
इतने वो समर्थ
कि बना दें
पत्थरों को भी
वाक्पटु वक्ता।
