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Sheela Sharma

Inspirational

3.8  

Sheela Sharma

Inspirational

खिलते रिश्ते

खिलते रिश्ते

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वक्त के उन थपेड़ों में 

मेरा सब कुछ बिखर चला 

तपती रही दुनिया की तपस में 

छोर कोई ना मिला


रौंदी जाती अंधेरी गलियों में 

पत्थर सी बेजुबान खामोश पड़ी

भिड़ गए जमाने से चलते चलते 

नजर जो तुम्हारी मुझ पर पड़ी 


भ्रातृप्रेम के फंदे बुनते रिश्ते बनाते

बंधवाया रक्षा सूत्र 

तब इस शुष्क तन स्पंदित मन को 

सघन छांव की आस बंधी 


अपना दर्द छुपा

अपमानित तिरस्कृत हो तुम

मेरी आंखों की कोर पोंछ 

दर्द बांटते रहे

हर मुश्किल को पार करते कराते 

झांक उठी भोर की उजास

हमें हीरे जैसा तराशते रहे


तुम्हें देख याद आता 

कर्णावती का हुमायूं को राखी भेजना

जात पात सीमा से बाहर

ह संसार क्या जाने इस बंधन को

समझना हुमायूं जैसा जोहरी बनकर


हमने हिलमिल साथ सीखा 

निर्मल निश्चल रिश्ते बनाना उन्हें निभाना 

पाया तुम्हारा अनमोल प्यार 

मेरे लिए आभूषण जैसा

सदैव ऐसा ही मनप्राण से निभाते रहना 


तुम मेरा प्यारा तारा 

जो छोटा होकर भी चंदा का साथ दें

उजाले की किरण बनता

तुम हो मेरे सूरज 

घोर अंधेरे को मिटा 

जीवन में उजाला करता 


मैं हूं चंदा 

अपनी शीत कलाओं से 

तुम्हारे जीवन को राहत देती 

तुम्हारे थके मन को शांति

 व कुम्हालाते जीवन को ताजगी से भर देती 


अक्सर दूरियों में 

रिश्ते 

फीकें पड़ जाते 

पर प्रीत 

के रंगों से रंगा यह धागा 

आस विश्वास की लौ जगाता 


कभी मैं गुरु बनती कभी शिष्य

रूठती मनाती अनुकूल प्रतिकूल होती

अनेक भावो में रंगती रंगाती

आनंद और अल्हादित 

मेरी पारखी नजर यही कहती 


भूगर्भ से निकला हीरा 

ही हीरा नहीं

वक्तानुसार 

पवित्र अटूट रिश्तो का बंधन भी हीरा 

व्यक्ति का व्यक्तित्व भी हीरा।


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