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Amit Kumar

Abstract

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Amit Kumar

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ख़्वाहिशें

ख़्वाहिशें

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अधूरी है ख़्वाहिशें

तो अधूरी ही सही

जीना मज़बूरी है

तो मज़बूरी ही सही


आज नहीं तो कल

सुधरेंगे हालात अपने भी

यह आस ज़रूरी है

तो ज़रूरी ही सही


वो ग़ैर भी 

कभी अपने थे

जिन्होंने भुला दिया हमको

उनको याद रखना


जी हुज़ूरी है 

तो जी हुज़ूरी ही सही।


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