ख़्वाब
ख़्वाब
रोज़ इक ख़्वाब टूट जाता है
जब तुम्हें दूर जाता देखता हूँ
एक पल जीने की चक्कर में
मैं रोज थोड़ा-थोड़ा मरता हूँ।
बस तुम्हारी एक झलक के लिए
मैं इन सड़कों पर घंटों बिताता हूँ
नतीजा मुझे मालुम है फिर भी
रोज यहाँ मरने आ जाता हूँ।
ये रोज का मरना भी कुबूल मुझे
तेरे लिये ये जान जो हाज़िर थी
पर मेरी इन यादों का मैं क्या करूँ
जो तुमने जिंदा ही दफन करी थी।
मेरे हिस्से की यादों को लेकर जाना
हम यही एक गुजारिश कर रहे
साथ रहना हमारे नसीब में नहीं
कम से कम हमारी यादें तो साथ रहे।।

