ख़ुशी
ख़ुशी
अब ख़ुशी मानी है,
तो जतानी तो पड़ेगी
हँसी झूठी ही क्यों न हो,
दिखानी तो पड़ेगी
घाव गहरे है कितने,
आप देख नहीं पाओगे
अब छुपाना है इन्हे,
तो पट्टी लगानी तो पड़ेगी
माना की हर ख़्वाब,
मुकम्मल नहीं होता
चाहा हुआ सब कुछ,
नसीब में नहीं ढलता
पर जीने की वज़ह भी ना बचे,
ये भी कोई बात है ?
और ऐसे जीना भी
नसीब में लिखा हो,
ये भी कोई बात है ?
समझता हूँ की सब फैसले,
इन्सान नहीं करता
कुछ ख़ुदा के,
लिखे हुए भी होते हैं
पर ऐसे फैसले भी अगर,
ख़ुदा ने लिए है
तो ऐसे ख़ुदा का वजूद,
मुझे मंज़ूर नहीं।