हद कर दी
हद कर दी
सीधी साधी बात को तिरछी कर दी
तुम्हारी नासमझी ने हद कर दी
सही हर बात को गलत कर दी
तुम्हारे नजरिये ने मुसीबत कर दी
तुम्हारी नासमझी ने हद कर दी
मैंने कुछ गलत नही किया, खुदा जानता है
किसी का बुरा नही चाहा, खुदा जानता है
ये तुम भी जानते होंगे, पर तुम खुदा न निकले
तुम्हारे इसी अनजानेपन ने गलतफहमी पैदा कर दी
तुम्हारी नासमझी ने हद कर दी
सच बताना क्या सब मेरे ही दोष थे ?
जब पलों को जिया, क्या तुम बेहोश थे ?
फिर क्यों बस मेरी ही जिल्लत और अपमान है ?
क्या अपनी जिम्मेदारी से छुपने का,
तुम्हारे पास यही इंतजाम है ?
तुम्हारे डर ने हर मीठी बात कड़वी कर दी
तुम्हारी नासमझी ने हद कर दी
कल थे हम कुछ खास, आज बस आम रह गये
कल जो थे नापाक, आज वो पाक हो गये
भुलाकर मेरे अपमानों को आज तुम इंसान हो गये
तुम्हारी इसी इन्सानियत ने उलझन कर दी
मेरे प्यार के पुष्पहार को जंजीर कर दी
तुम्हारी नासमझी ने हद कर दी।