ख़ुदकुशी
ख़ुदकुशी
हाँ! परेशान था मैं,
थोड़ा ज्यादा परेशान था मैं।
कौन सबब था मेरी परेशानी का ?
ये दोष था किसी और का या मेरी जवानी का ?
कोई गया था मुझे छोड़ के,
उसकी याद आती थी हर मोड़ पे।
पर क्यों???
मैं भी तो एक दिन वहाँ जाऊंगा,
क्या मैं जाकर उससे मिल पाउँगा ?
मेरे भी कुछ प्रश्न थे,
लगता था,
लोग मेरे दुख में मनाते जश्न थे।।
कुछ सपने थे मेरे जो अपने थे मेरे,
कुछ तो किये पूरे,
बाकी रह गए यहीं अधूरे।
सवालों को यहीं छोड़े जा रहा हूँ,
इस दुनिया से मुँह मोड़े जा रहा हूँ
शिव शंकर के पास, सुशांत, मैं जा रहा हूँ।