STORYMIRROR

Hitesh Vyas

Abstract Others

3  

Hitesh Vyas

Abstract Others

मन का गोपनीय कोना

मन का गोपनीय कोना

1 min
204

कुछ ऐसे हैं ज़ज्बात मेरे,

जो खुद को नहीं बता सकता,

मैं तुम्हें नहीं समझा सकता।


समझने की वो बात ही नहीं,

वो दिल की है, दिमाग की नहीं,

मैं तुम्हें नहीं समझा सकता,

वो बात नहीं बता सकता।


जो मन में अंधेरा कोना है,

वहां चीजे हैं कुछ और कई,

अंधियारे में यूँ रखा है,

छुपाया है, पर चोर नहीं।

मैं चांदनी उन्हें दिखाता हूँ,

पर सूरज नहीं दिखा सकता,

चंद्र दर्शन नहीं करा सकता,

मैं तुम्हें नहीं समझा सकता।


चांदनी में मुझे चमकते हैं,

कुछ विकृत अनुभव होते हैं,

वो अनुभव नहीं बता सकता,

मैं तुम्हें नहीं समझा सकता।


कभी कभी मैं जाता हूँ,

उस कोने में समय बिताता हूँ,

ठहराव की आशा करता हूँ,

विश्राम मैं थोड़ा पाता हूँ।

पर ज्वार बहुत उन लहरों में,

मैं दर्द ना वहां बहा सकता,

वो दर्द नहीं बता सकता,

मैं तुम्हें नहीं समझा सकता।l


कुछ ऐसे हैं ज़ज्बात मेरे,

जो खुद को नहीं बता सकता,

मैं तुम्हें नहीं समझा सकता।l


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract