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DEVSHREE PAREEK

Abstract Romance Tragedy

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DEVSHREE PAREEK

Abstract Romance Tragedy

ख़ामोशी का आलम

ख़ामोशी का आलम

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गुजरा ज़ख्म अपनें निशाँ छोड़ जाता है

जिस तरहाँ काफ़िर, दीन-ओं-इमाँ छोड़ जाता है…


ना फेंको पत्थर, उस खामोश बहते दरिया में

कभी-कभी ख़ामोशी का आलम, तूफाँ छोड़ जाता है…


बहार बन जो चमन को करता है जन्नत

वो मौसम भी जाते हुए, ख़िज़ाँ छोड़ जाता है…


तिनका-तिनका जोड़कर बनाता है जो आशियाँ

घर का मालिक एक दिन, वो मकाँ छोड़ जाता है…


‘अर्पिता की हस्ती रफ़्ता-रफ़्ता ख़ाक हो चली

ज़िस्म-ए-ख़ाक भी घुटता हुआ धुआँ छोड़ जाता है।


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