कहानी जिंदगी की
कहानी जिंदगी की
कही धूप तो कहीं छाँव है
समझने वाले समझ गये
ये वक्त के दाँव हैं ,
और जो न समझा
उसके लिये ये गहरे घाव हैं ।
रोशनी तो सूरज में भी है
और चाँद में भी
फ़र्क इतना है कि
किसी में आग है तो
किसी मे दाग़ है ।
फूल में बैठी तितली को देखकर
सोचने पर मजबूर हूँ
कि किसका रंग किस पर चढ़ा है
न फूल को उड़ना है और
न तितली को ठहरना है ।
वक्त सही है या गलत
ये तो नज़रिया हमारा है,
हम जीत गये तब भी
वक्त के मुलाज़िम
और हार गए तो भी
कसूर हमारा है ।
ऐ जिंदगी !
शह भी तेरी और
मात भी तेरी ,
शायद ही कोई समझ पाए
कहानी तेरी ।
