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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

कहाँ लिख पाया !

कहाँ लिख पाया !

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कह लेता हूँ मैं अंकगणित

अपनी बहुत सी कविताओं में।

कहाँ कह पाया मगर वह केमिस्ट्री,

जिसकी इक्वेशन्स भी कह सकती है कि -

दो और दो मिलकर हमेशा पांच नहीं होते,

और बताती है पानी से लेकर ब्रह्मांडों के अंदर का फ़ॉर्मूला!


कह पाया ही नहीं वह भौतिकी भी,

जो समझा देती है ऊर्जाओं का रहस्य,

और बता देती है, उस एसी की हवा, जिसके बिना रहन-सहन कहाँ लगता है रईसों सा।


यांत्रिक जीवन की बात तो की मेरी कविताओं ने,

लेकिन यंत्र जिसका प्रयोग किया उसे ही श्रद्धा से कह नहीं पाया।


शास्त्रों को तो बहुत कहा,

लेकिन अर्थशास्त्र टिक नहीं पाया कविताओं में।

वो और बात कि कविताओं के लिए धन नहीं मिला तो प्रकाशन अर्थहीन माना!


खूब लिखा फूल-पत्तियों की सुन्दरता को भी,

कहाँ लिख पाया लेकिन पार्क में गाड़ियों की पार्किंग और गूँजते मोबाइल फोन!


कह दिया माँ को देवी सरीखा,

माँ भी इंसान है, कर सकती है गलती, यह कहाँ कह पाया!


शोषण को लिखा बहुत बार,

लिखी शोषित की मजबूरियाँ।

कहाँ कह पाया शोषित को कि वह कैसे करे विरोध!


हालांकि बहुत लिखा है विरोध-विरोध भी, जोश भरी बातों को,

लेकिन चमचागिरी उन्नति का पथ है, जानते हुए भी, यह कहाँ लिख पाया?


सच है इतिहास में जो भी लिखा गया, उसे ही दुहरा दिया।

कहाँ लिख पाया मैं मेरी मौलिक सोच!!

यह जानते हुए भी कि,

पुरानी लकीरों को नए ढंग से खींच देने को कविता तो नहीं कहते।


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