कहां जाओगे
कहां जाओगे
बेशुमार दौलत छीनकर मासूमों से तुम कहां जाओगे।
यूं संकट की घड़ी में उनको लूटकर तुम कहां जाओगे।
मर्ज़ की दवा को ऊँचे दाम पर बेचकर तुमने इंसानियत बेचदी,
अब उनसे उनकी सांसें छीनकर तुम कहां जाओगे।
संकट की इस घड़ी में तुम्हें हौसला बनना था ,
उनका हौसला छीनकर तुम कहां जाओगे।
कहीं ऑक्सीजन की कालाबाज़ारी हुई तो कहीं इंजेक्शन की धांधली,
इन सारे पापों का बोझ लेकर तुम कहां जाओगे।
किसी से उनकी माँ छीन ली, तो किसे के सर से पिता का साया,
इतनी यातनाओं की आह लेकर तुम कहां जाओगे।
असीम सपनों क घड़े को तोड़कर भी जो वो अपना शुल्क न चूका पाए ,
ऐसे पैसे वसूलकर तुम कहां जाओगे।
रोग में रुखा व्यवहार कर तो पहले ही तुमने मार दिया था,
अब अंतिम समय में लकड़ियों का मोल कर तुम कहां जाओगे।
अपने स्वार्थ के खातिर तुमने कई परिवार उजाड़ दिए,
अब बेसहारों की दहाड़ सुन तुम कहां जाओगे।
इतने गुनाह कर दिए हैं की जिसका कोई हिसाब नहीं,
जो अब गुनाह कबूल भी लिया तो कहां जाओगे।