कहां हम तुमसे ......
कहां हम तुमसे ......
"हमें भी शहर में कई चाहते हैं।
फिर भी तुम्हें हम खुदा मानते हैं।।
सर झुकता है सजदे में दर पे कहीं।
तो बस तुम्हारी खुशी की दुआ मांगते हैं।।
सपने में आते हो तुम रोज मेरे
फिर कैसे हमें लोग जुदा मानते हैं।
बस यादों से तेरे नहाते रहे,
इससे ज्यादा, कहां मांगते हैं।
फूल के खुशबुओं सा होगा ये जीवन
पतंग की डोर सी जुड़ तो जाओ जरा
बस तुमसे इतनी रजा मांगते हैं।
और.. खामोश क्यों हो कुछ तो बोलो जरा
कहां हम तुमसे तुम्हारा जहां मांगते हैं।"