किसान के जीवन का संघर्ष।
किसान के जीवन का संघर्ष।
उठा सवेरे नित कर्म किया,बैलों को चूनी शानी है।
हल उठा कंधे पर रख, निकल पड़ा मनमानी है।।
बैलों के संग खुद भी चलता, बना पसीना पानी है।
नित धरती का सीना चीर रहा ओ,अब जग की भूख मिटानी है।।
और भेज पुत्र को दिया प्रयाग,खुद करता नित्य किसानी है।
झेल रहा ओ दंश धूप के,साथ में सूखा पानी है।।
जो हार हार के हार न मानें ,उसका नाम किसानी है।
अंजुल भर अन्न हुआ....,जो बोया ओ भी न पाया
फिर भी हार न मानी है।.......
हल उठा कंधे पर रख,फिर से निकल पड़ा ओ...
अब अगली फसल लगानी है।
जो हार हार के हार न माने..उसका नाम किसानी है।