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Sunita Shukla

Inspirational

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Sunita Shukla

Inspirational

द्वंद्व

द्वंद्व

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ध्वंस है विध्वंस है,

मिट रहा हर अंश है।

अंग-भंग हो जनमानस भी,

बिखरे चारों ओर हैं।

मन में समाहित संताप से,

धधक रही ज्वाला नफ़रत की ।

हृदय विदारक वीभत्सता का चाबुक,

फिर चलाया है अपने ही किसी दोस्त ने।

जब विश्वासी ही बने विनाशक,

अस्तित्व भी धुँधला जाता है ।

जीर्ण-शीर्ण मानवता का ,

चेहरा विस्मित हो जाता है ।

शोषित शोणित इस समाज का,

हर मानव असहाय है ।

संप्रदाय की बेड़ियों में,

जकड़ा हर ईमान है ।

शिक्षित समाज विक्षिप्त मस्तिष्क,

फिर कैसे संभव विकास ।

हे आने वाली पीढ़ी सुन,

अब तुम से ही बची हुई एक आस।

मन को अपने ना भटकाना है,

किसी झांसे में नहीं आना है

तुमको एक नया समाज बनाना है।

                       



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