मैं पिता हूँ
मैं पिता हूँ
मैं पिता हूँ
माँ सा नहीं हूँ कोमल
पर हूँ मैं तेरा मनोबल
हर दम मैं तेरे साथ नहीं
पर रखता ध्यान हर पल ।
जब तुम झूलते थे पालने में
माँ ममता लुटाती,तुझे पालने में
संचय करता मैं एक एक पाई
जो खर्चने थे मुझे, तुम्हें पालने में।
मैं पिता हूँ
मैं छलका नहीं पाता भावना
जग में दिखे जो लुभावना
सतत पर्यटन से मैं ढूंढता
तेरे लिए जीवन की नई संभावना।
कभी नहीं कहा धरती-चाँद एक कर दूंगा
पर हर वक्त सोचता, मैं कुछ भी कर लूंगा
अपने संतान के हित की खातिर
आसमान से तारे भी तोड़ लाऊँगा।
मैं पिता हूँ
सावन में धरा हो जाती लुभावनी
पतझड़ में वही लगती डरावनी
मैं दोनों के संगम को समझाता
बताता जीवन कैसे बने सुहावनी।
हौसला रखना जीवन में हरदम
जीवन कभी कर दे यदि बेदम
हिम्मत हार हौसला नहीं खोना
याद करना, मैं दिखूंगा हर-कदम।
मैं पिता हूँ।