क्यों हारते हो ?
क्यों हारते हो ?
तुम जिन्दा हो, तब भी तुम्हारे लिये सवाल होंगे,
तुम जिन्दा ‘नहीं’ रहोगे तब भी तुम्हारे लिये सवाल होंगे।
जवाब तुम दो चाहे तुम्हारे अपने लोग,
या ना दो, या ना दे पाओ या चाहे देना ही ना चाहो।
पर, सवाल तो होंगे ।
क्योंकि ‘उन्हें’ सवाल पूछने होंगे।
ये जिन्दगी तुम्हारी है,
इसकी लड़ाई, इस से मिला और जुड़ा संघर्ष भी तुम्हारा ही है,
तो क्यों हारते हो?
क्यों औरों के लिए कोई जवाब ढूँढते हो?
और क्यों उलझते ही हो उन उलझे हुए लोगों मे?
याद रखना,
जो तुम से सवाल पूछ रहे हैं,
वो खुद कभी अपने जवाब नहीं दे पाये हैं ।
जो तुम्हें डरा रहे हैं,
वो खुद अन्दर तक जीवन मे अपने डरे हुए हैं ।
और जो तुम्हें जीतने नहीं देना चाहते हैं,
वो खुद अपने जीवन में कब के हार मान चुके हैं ।
ज़रा देखो उन्हें ध्यान से।
तो क्यों हारते हो?
रहने दो, जाने दो इन लोगों को ।
तुम अपना जीवन जियो अपने तरीके से अपने लिये जीयो ।
क्योंकि, उन्हें तो बस सवाल पूछने होंगे।
मैनें सुना है कि तुम अपने ‘अपनों’ से कुछ कुछ डरे हुए हो !!?
अपना वो नहीं जो मुश्किल मे हाथ छोड़ दे,
बल्कि वो, जो और मज़बूती से हाथ थाम ले।
फ़िर भी कोई ऐसा है तुम्हारा ‘अपना’
तो आओ, पहले हम ही ऐसे लोगों को अपनों की लिस्ट से बाहर कर दें।
ज़रा देखो उन्हें ध्यान से।
तो क्यों हारते हो ?
