कड़वाहट को जाने दो
कड़वाहट को जाने दो


नफ़रत की ऊंची दीवारों को ,नहीं कहीं चुन जानें दो,
जो लील रही समरसता को , कड़वाहट धुल जाने दो।।
कहीं कुहासा है गहरा हर द्वेषपूर्ण कलुषित हृद में,
कहीं है छाया घोर अंधेरा कुविचारों से जीवन में,
भरा हुआ उन्माद दम्भ से दग्ध करे अन्तर्मन को,
हानि - लाभ के कंटक ये लहुलुहान करते मन को,
बहने दो शीतल पुरवाई दग्धता अभी मिट जाने दो,
मिट जाने दो घना कुहासा दिनकर को उग जाने दो,
जो लील रही समरसता को वो कड़वाहट धुल जाने दो।।
उन्मादी उग्रता लिए हो व्यथित मनुज जो भटक रहे,
हाथों में ले हथियार युवा बन दनुज यूं ही हैं भटक रहे,
साजिश रचते बन आतंकी मानवता की हत्या करके,
संकट बनते निज स्वजनों पर बर्बरता हृद में भर के,
युवाशक्ति संगठित करो इनको बर्बर ना बनने दो,
हो मानवता का समावेश सब कड़वाहट धुल जाने दो
जो लील रही समरसता को वो कड़वाहट धुल जाने दो।।
अनुशासन के पथ पर चलकर विजय पताका लहराएं,
संयम नियम का पालन करते जीवन पथ पर बढ़ते जाएं,
रस छंद अलंकृत वाणी हो जन-जीवन हित कल्याणी हो,
चहुंओर शांतिमय हो जीवन व्यवहार सदा हितकारी हो,
निर्झरिणी सा हृद प्रेम बहे नित प्रेम सुधा घट भरने दो,
लाने को समरस गंगा निर्मल भगीरथ प्रयास कर जाने दो,
जो लील रही समरसता को वो कड़वाहट धुल जाने दो।।
चहुं ओर ही लहराएं खुशियां श्रम के अंकुर ना मुरझाए,
लहरों पर मन थिरक उठे हर चेहरा सुख में मुस्काए,
गूंज उठेगा पञ्चमस्वर जो राष्ट्रीय गीत सब मिल गाएं,
बज उठे चैन की वंशी तब स्वर राष्ट्रवाद में जब आएं,
मत रोक प्रगति के अश्वों को अपने मंजिल तक जाने दो,
मत खड़ा करो व्यवधान कभी सबको मंजिल पे जाने दो,
जो लील रही समरसता को वो कड़वाहट धुल जाने दो।।
कहीं भटक न जाना ओ राही तुम राजनीति की गलियों में,
नहीं कोई मन अभिमान रहे तुम्हें अपने जीवन कुंजन में,
हर कर्म तेरा निष्काम रहे न उद्दाम कामना हो मन में,
नहीं चंचलता आधिक्य रहे नहीं दूषित भाव भरे दृग में,
हे! मनुज मनुज-हित हो उदार हृद प्रेम सुरभि भर जाने दो,
जीवन मकरंद जो सोख रहा वो कड़वाहट धुल जाने दो,
जो लील रही समरसता को वो कड़वाहट धुल जाने दो।।