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Manisha Manjari

Tragedy Classics Crime

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Manisha Manjari

Tragedy Classics Crime

कड़वा है पर सत्य से भरा है

कड़वा है पर सत्य से भरा है

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यहाँ संस्कार खामोशी से तोले जाते हैं,

शब्द भी निःशब्द होकर बोले जाते हैं।

शरीर भले चोटों से भरा हो, पर

लबों पे मुस्कुराहटों के ताले ठोके जाते हैं।


संवेदनाओं के अर्थ निरर्थक होते हैं, 

जब आंसू उपेक्षाओं से धो दिए जाते हैं। 

आंगन की दहलीज को सीमा बनाकर, 

आकांक्षाओं के दम घोटें जाते हैं। 


सिसकती रहती है रूह हर वक़्त, 

पर उसे वो कर्तव्य कह कर बुलाते हैं। 

आंखों तक सपनों की परछाईयाँ भी ना पहुंचे, 

इसलिए अज्ञानता के अंधकार को फैलाते हैं। 


रीसते घावों से उठी चीखों को दबाने हेतू, 

भय का उन्मंत तांडव मचाते हैं। 

भावनाओं में यदि आत्मसम्मान दिख जाए, 

तो उसे वो चरित्रहीनता का प्रमाणपत्र दे जाते हैं। 


और यदि विचारों में अंतर की झलक आए, 

तो दोषी परवरिश को बनाते हैं। 

समाज में कुछ घर ऐसे भी होते हैं, 

जहाँ भेडिये इंसानों की शक्ल में पाए जाते हैं।


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