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AJAY AMITABH SUMAN

Drama Others

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AJAY AMITABH SUMAN

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कचहरी

कचहरी

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जहाँ जुर्म की दस्तानों पे, 

लफ़्ज़ों के हैं कील। 

वहीं कचहरी मिल जायेंगे, 

जिंदलजी वकील।


लफ़्ज़ों पे हीं जिंदलजी का,

पूरा है बाजार टिका,

झूठ बदल जाता है सच में, 

ऐसी होती है दलील।


औरों के हालात पे इनको, 

कोई भी जज्बात नही,

धर तो आगे नोट तभी तो, 

हो पाती है डील।


काला कोट पहनते जिंदल,

काला हीं सबकुछ भाए,

मिले सफेदी काले में वो,

कर देते तब्दील।


कागज के अल्फ़ाज़ बहुत है,

भारी धीर पहाड़ों से,

फाइलों में दबे पड़े हैं, 

नामी मुवक्किल।


अगर जरूरत राई को भी,

जिंदल जी पहाड़ कहें,

और जरूरी परबत को भी,

कह देते हैं तिल।


गीता पर धर हाथ शपथ ये,

दिलवाते हैं जिंदल साहब,

अगर बोलोगे सच तुम प्यारे,

होगी फिर मुश्किल।


आईन-ए-बाजार हैं चोखा, 

जिंदल जी सारे जाने,

दफ़ा के चादर ओढ़ के सच को,

कर देते जलील।

 

उदर बड़ा है कचहरी का,

उदर क्षोभ न मिटता है,

जैसे हनुमत को सुरसा कभी,

ले जाती थी लील।


आँखों में पट्टी लगवाक़े,

सही खड़ी है कचहरी,

बन्द आँखों में छुपी पड़ी है,

हरी भरी सी झील।


यही खेल है एक ऐसा कि, 

जीत हार की फिक्र नहीं,

जीत गए तो ठीक ठाक,

और हारे तो अपील।


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