कभी चंदा, कभी सूरज
कभी चंदा, कभी सूरज
कभी चंदा, कभी सूरज,
कभी सितारों सा नज़र आता है।
कैसे करूँ बयाँ ख़ुशी अपनी,
कि मेरे अँगना मेरा लाल मुस्कराता है।
छम- छम करती उसकी पैजनियाँ,
मेरे कानों में रस घोल रही।
लाल मेरा है, गोपाल जैसा,
मैं मन में ही खुद से बोल रही।
हर पल रह तू मेरी आँख तले,
सुबह हो या फिर शाम ढले।
होने न दूँ ख़ुद से दूर,
रखूँ मैं, तुझको ममता की छाँव तले।
नन्हे-नन्हे पैरों से जब भी,
वो दौड़ा आता है।
हुए प्रफुल्लित हृदय मेरा,
और मन ख़ुश हो जाता है।
दिन रात मैं देखूँ बस उसको ही,
उसके सिवा मुझको कुछ नहीं सुहाता है।
हाँ, मेरे अँगना मेरा लाल मुस्कराता है।।