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Ruchika Rai

Abstract Others

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Ruchika Rai

Abstract Others

कौन

कौन

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जीवन के हर अँधियारे में

उजास ढूँढती।

आशाओं के दीपक के टिमटिमाती

लौ के सहारे से

जीवन के अमावस को काटती।

कभी सूरज की किरणों सा प्रखर बन,

कभी चाँद की चाँदनी सा शीतल बन,

बढ़ती ही जाती,

खुद के अस्तित्व की पहचान बनाने को 

सदैव ही प्रयासरत

आखिर कौन हूँ मैं?

जिम्मेदारियों की भारी बड़ी सी गठरी उठाये

सधे कदमों को जीवन रण में बढ़ाये,

कभी टूटकर बिखरती,

कभी चट्टानों सा इरादों को मजबूत करती।

हारती जीतती,

कभी पल में आनंदित होती,

कभी उदासी के घने आवरण

में खुद को छिपाकर

दुनिया से दूर भागने की कोशिश करती।

आखिर कौन हूँ मैं?

कभी अपनी ही भावनाओं पर बाँध लगाती,

कभी दायरों को तोड़ कर 

आगे बढ़ने को आतुर।

कभी उन्मुक्त हँसी बिखेरती,

कभी आँसुओं के सैलाब में खुद को डुबाती,

कभी अपने पारिवारिक धुरी पर

चक्करघिन्नी सी चक्कर काटती।

कभी आसमान की बुलंदियों को छूने को व्याकुल।

आखिर कौन हूँ मैं।

बेटी, बहन, माँ, प्रेमिका,

पत्नी दादी फुआ चाची

इन रिश्तों में बँधकर यही हो जाती,

चाहती हूँ जब कोई पूछे कौन हूँ मैं

मिले उत्तर मैं इंसान हूँ

हाँ कौन हूँ मैं।


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