कौन रंग लगा के गया
कौन रंग लगा के गया


उंगली बढ़ा ,
मैं कलाई पकड़ लूंगा ,
तू करीब आ ,
मैं सीने में भींच लूंगा ,
तू कांधा थाम ,
मैं कमर से खींच लूंगा ,
तू देखे जो मुझे ,
मैं पलकों को चूम लूंगा ,
तू गाल दे चूमने को
मैं तेरे लब चूम लूंगा ,
तू सांसों को उलझा
मैं सांसों को एक कर दूंगा..!
''प्यार'' का पहला.....
''इश्क'' का दूसरा.....
और ''मोहब्बत'' का तीसरा अक्षर अधूरा होता है....
इसलिए हम तुम्हें ''चाहते'' हैं
क्योंकि ''
चाहत'' का हर अक्षर पूरा होता है ...
मेरे इश्क ने उसे इतना मुश्किल तो कर ही दिया है,
कि हासिल करने वाला भी उसे पूरा नहीं पा सकेगा।
बेमतलब , बेमकसद , बेपरवाह सा हूँ ,
एक टूटती ज़िन्दगी का गवाह सा हूँ
बस मेरे मुस्कुराने की वजह बने रहना
जिंदगी मे न सही मगर जिंदगी बने रहना।
ये भी उसकी मोहब्बत ही थी जनाब की उसने,
घर के दीवार छोड़ कर मुझे चुना लगाया
कौन रंग लगा के गया इश्क़ के लिबास में,
दूजा रंग चढ़ता ही नहीं रूह के मिज़ाज में।