कौन जाने, कौन कहां मिले.......
कौन जाने, कौन कहां मिले.......
जबान से सदा इनकार करते रहे
इकरार सारे आंख के इशारों में मिले।
मिलने को तो मिलते हैं रोज़ कई लोग
एक आप हमको लाखों हजारों में मिले।
कोई मुनासिब जगह नहीं मिली ज़माने में
वो बन कर लफ्ज़ हमसे किताबों में मिले
सौ पहरे राहों में, निगाहों पे, नज़रों की नजर
आखिर, आकर वो हमसे ख्वाबों में मिले।
जिनसे मिलने की आस में
ज़िंदगी दम तोड़ देती है
वो अपने सभी को, अपने ही
जनाजों में मिले
