कैसे समझू में तुझे
कैसे समझू में तुझे
ऐ तक़दीर कैसे समझू में तुझे,
हर पल एक नई रूप से जो मुलाकात होती है,
यंकी करके तुझे आगे बढ़ने लगे तो,
फिर एक नई मोड़ पे आ जाते है,
बोल कैसे समझू मै तुझे।
हरपल जो तू रूप बदलती रहती है,
ना जाने देती है, न जीने देती है,
दूर जाऊ तो पास बुलाती है,
पास आने लगी तो ठोकर मार देती है,
बोल मेरे तक़दीर कैसे समझु मैं तुझे।
किसको यंकी करे यंहा,
जब खुद की साया ही पीछा छोड़ देती है,
जनम देने बाली माँ,आपने संतान को,
कोख मैं ही मार देती है,
बोल ऐ दुनिया कैसे समझु मै तुझे।
लहरे आगे बढ़ के सब कुछ ले लेती है,
पल भर में हॉटै के पीछे,
खुद को निर्दोष साबित करती है,
बोल ऐ मेरे मालिक समझू मैं तुझे।
