मैं स्वाधीन हूँ ?
मैं स्वाधीन हूँ ?
स्वाधीन है देश मेरा,
स्वाधीन हूँ मैं आज परायों से,
फिर भी मैं पराधीन हूँ
ना जाने क्यों,
आज भी अपनों की सोच से
लहराता हर तरफ आजादी का ध्वज,
पर आज भी मेरे देश की बेटी
की पहचान में लहरा रहा है एक दर्द,
जलती है यहाँ उसकी चिता हर रोज।
चले गए वह जो थे पराये
और अपनों के बिच
हो गए हम पराधीन सोच से
फिर भी में स्वाधीन, कहती हूँ गर्व से
उठते हैं सवाल ,मन में
क्या मैं स्वाधीन हूँ?
हाँबेशक, पर किससे ?
देश मेरा अपना,
मैं मानती हूँ।
पर घर कौनसा है मेरा,
इस से मगर आज भी मैं अंजान हूँ।
एक घर माँ का,
जिसमे पराया है मुझे माना।
दूसरा है ससुराल,
जिसमे ना थी मेरी कोई पहचान
ना कोई वहाँ मानता मुझे
अपना।
क्या घर,
क्या बहार
चारों तरफ थी बंदिशे,
आजादी क्या,
यह तो बस सपनो में ही देखती
क्या घर, क्या बाहर
मैं पराधीन ही रही,
हर पल अपनों के
बुरी नजरो से खुद को बचाती रही
तो क्या, मैं आज स्वाधीन हूँ
यह सवाल मैं अपने आप से हूँ पूछती।
कभी दहेज़ के वासते
तो कभी इस शरीर के वासते,
जलती मेरी चिता
कहने को तो मिले हैं अधिकार,
फिर भी होता रहता क्यों मेरा बहिष्कार ?
कभी द्रौपदी तो कभी सीता,
कभी लक्ष्मी तो कभी राधा,
कभी अपमान
तो कभी इल्जाम
कभी वाद तो कभी त्याग,
यही हे बस मेरी पहचान।
कभी खुल के बाहर निकल न सकी
न आजादी से अपनी पहचान बना सकी
फिर भी नारा लगाती हूँ
गर्व से, मैं स्वाधीन हूँ आज।