कैसे करूँ यकीन ?
कैसे करूँ यकीन ?
कैसे बढ़े ये कदम,
तेरी मंदिर की ओर ?
वो, जिनकी घण्टियों की गूँज से,
कभी तेरी जय जयकार होती,
आज उन्ही की गूँज में कहीं,
खो सी गयी हैं,
उस बच्ची की चीखें !
कैसे बढ़े ये कदम,
तेरी मंदिर की ओर ?
वो, जिसकी चौखट पर आकर,
लोगों को जीवन की नयी राह मिलती,
आज उसी चौखट पर कहीं बिखर से गये हैं,
उस बच्ची के अरमान !
कैसे करूँ यकीन,
तेरी मौजूदगी पे ?
वो, जिसने द्रौपदी को तो इन्साफ़ दिला दिया,
पर अनसुनी-सी कर दी है,
उस बच्ची की पुकार !
कैसे करूँ यकीन,
तेरी मौजूदगी पे ?
वो, जिसकी मूरत के आगे कभी इंसान अपने,
पापों का प्रायश्चित करता,
आज उसी के आगे कहीं लूट लिया गया है,
उस बच्ची का बचपन ।।