कैसे कहूँ तुझे
कैसे कहूँ तुझे
दिल में एक ख़लिश है कैसे कहूँ तुझे
कुछ अनकही सी बात है कैसे कहूँ तुझे।
क्यूँ तु करती है हँस-हँस कर बातें ग़ेरों से
चुभते हैं तीर सीने में मेरे कैसे कहूँ तुझे ।
सर चढ़ कर मय जैसा बोलता है इश्क तेरा
लगती है तु कोई हूर सी कैसे कहूँ तुझे ।
चँद लम्हात भी जुदाई के ले लेते है जान
ख़्यालों में भी ना जाना दूर कैसे कहूँ तुझे ।
रूख-ए-पुरनूर हो, दीदा-ए- मख्मूर हो
करते है लोग सरगोशियां कैसे कहूँ तुझे।
सो जाता हूँ कि ख़यालों में मुलाकात होगी
नींद भी करती है दग़ा तुमसा कैसे कहूँ तुझे।
ग़ैर की बाँहो में बाँहें डाल कर यूँ ना जलाओ
कभी मेरे भी गले में बाँहें डाल कैसे कहूँ तुझे।